क़ाज़ी अब्दुल सत्तार नहीं रहे

नयी दिल्ली ः 29 अक्टूबर ः  उर्दू के नामचीन अदीब, पद्मश्री क़ाज़ी अब्दुल सत्तार साहब का इंतकाल हिंदी-उर्दू की अदबी दुनिया और तरक्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है. वे 85 वर्ष के थे. उनके उपन्यासों में से ‘शब-गज़ीदा’, ‘दारा शिकोह’, ‘सलाहुद्दीन अयूबी’, ‘ख़ालिद इब्न-ए-वलीद’, ‘ग़ालिब’, ‘हज़रत जान’, ‘पीतल का घंटा’ आदि प्रसिद्ध हैं. ‘उर्दू शायरी में क़ुनूतियात’ और ‘जमालियात और हिंदुस्तानी जमालियात’ उनकी आलोचनात्मक पुस्तकें हैं.

क़ाज़ी अब्दुल सत्तार साहब को पद्मश्री के अलावा ग़ालिब अवार्ड, मीर अवार्ड, यूपी उर्दू अकादमी अवार्ड, आलमी अवार्ड, पहला निशान-ए-सर सय्यद अवार्ड, बहादुर शाह ज़फ़र अवार्ड, दोहा (क़तर) का इंटरनेशनल अवार्ड, राष्ट्रीय इक़बाल अवार्ड और कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया.

उन्होंने फ़रवरी 1982 में दिल्ली में हुए जनवादी लेखक संघ/अंजुमन जम्हूरियतपसंद मुसन्नफ़ीन के स्थापना सम्मलेन का उद्घाटन किया था. तब से वे संगठन के सदस्य और पदाधिकारी के रूप में लगातार जुड़े रहे और जलेस को सक्रिय बनाये रखने में योगदान देते रहे.

जनवादी लेखक संघ परिवार क़ाज़ी अब्दुल सत्तार साहब के इंतकाल पर शोकसंतप्त है और उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

 


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *