प्रो. चंद्रकला पांडेय की स्मृति को नमन

नयी दिल्ली : 17 सितंबर 2025: विदुषी, रचनाकार और अनुवादक प्रो. चंद्रकला पांडेय का निधन हिंदी भाषा और प्रगतिशील-जनवादी आंदोलन के लिए एक क्षति है। जनवादी लेखक संघ उनके निधन पर शोक व्यक्त करता है। वे लंबे समय तक जनवादी लेखक संघ की उपाध्यक्ष रही थीं।

आज़मगढ़ में जन्मी चंद्रा जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त थीं। 1993 से 2005 तक, लगातार दो बार वे पश्चिम बंगाल से राज्य सभा की सांसद रहीं। बांग्ला, अंग्रेज़ी और हिंदी अनुवाद में उनकी विशेष दक्षता थी। त्रिपुरा की कॉकबरक भाषा की महत्त्वपूर्ण रचनाओं से हिंदी जगत को परिचित कराने का उन्हें श्रेय जाता है। अद्वैतमल्ल बर्मन के प्रसिद्ध बांग्ला उपन्यास ‘तितास एकटी नदीर नाम’ को जय कौशल के साथ मिलकर ‘तितास एक नदी का नाम’ शीर्षक से उन्होंने हिंदी में उपलब्ध कराया। इसी तरह ‘आधा गांव’ और कई अन्य महत्त्वपूर्ण हिंदी कृतियों का उन्होंने बांग्ला में अनुवाद किया। उनका अपना पहला काव्य-संग्रह 1998 में प्रकाशित हुआ—‘उत्सव नहीं हैं मेरे शब्द’। मूल और अनुवाद सहित उनकी कुल सोलह पुस्तकें प्रकाशित हुईं।

 जनवादी लेखक संघ प्रो. चंद्रकला पांडेय की स्मृति को नमन करता है और उन्हें हृदय से आदरांजलि देता है।


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