नयी दिल्ली : 25 नवंबर : रामनाथ गोयनका एक्सेलेंस इन जर्नलिज्म़ अवार्ड्स के आठवें संस्करण के मौक़े पर अभिनेता आमिर ख़ान ने समाज में गहरे उतरती असुरक्षा और भय की भावना का ज़िक्र करते हुए लेखकों, कलाकारों, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के विरोध-प्रदर्शन के प्रति जिन शब्दों में सहमति व्यक्त की है, वह सराहनीय है। उन्होंने सृजनात्मक कर्म में लगे लोगों द्वारा अपने अहसास – अपनी हताशा और असंतुष्टि – को वाणी देने का समर्थन तो किया ही है, घटनाओं के सिलसिले को देखते हुए एक व्यक्ति और नागरिक के रूप में खुद अपने भय को भी व्यक्त किया है, साथ ही सरकार में बैठे जन-प्रतिनिधियों के रवैये से किसी तरह का आश्वासन हासिल न होने की आलोचना की है। इस विडंबना पर ग़ौर किया जाना चाहिए कि हर बार की तरह इस बार भी असहिष्णुता की आलोचना पर अनुपम खेर सरीखे लोगों ने जो प्रतिक्रिया ज़ाहिर की, वह उसी असहिष्णुता का असंदिग्ध उदाहरण है। यह बात सही है कि आमिर ख़ान को आमिर ख़ान इसी देश ने बनाया है, पर वह उसी बहुलतावाद की देन है जिसे आरएसएस और भाजपा तथा उनके समानधर्मा संगठन ख़त्म कर देने पर उतारू हैं। क्या यह बताने की ज़रूरत है कि बढ़ती असहिष्णुता की बात करना इस देश की आलोचना नहीं, बल्कि ‘भारत की संकल्पना’ को नेस्तनाबूद करने पर आमादा ताक़तों की आलोचना है? जहां राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे लोग इस तरह की संविधान-विरुद्ध बात कह रहे हों कि हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए है (संदर्भ: असम के राज्यपाल का हालिया बयान), और ऐसे बयान अपवादस्वरूप न आकर प्रतिदिन किसी-न-किसी कोने से आ रहे हों, साथ ही सरकार में बैठी पार्टी की चुप्पियों और कारगुज़ारियों में उनके खि़लाफ़ कोई कार्रवाई तो दूर, हिमायत का रवैया पढ़ा जा सकता हो, वहां आमिर ख़ान की बात की ईमानदारी से कोई इनकार नहीं कर सकता। अलबत्ता लेखकों पर पैसे लेकर विरोध करने का आरोप लगानेवालों से उस ईमानदारी को समझने-सराहने की उम्मीद करना ज़्यादती होगी!
जनवादी लेखक संघ ‘भारत की संकल्पना’ के प्रति क्रूरतापूर्ण असहिष्णुता दिखाने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ विरोध की मुहिम को सुचिंतित समर्थन देने के लिए आमिर ख़ान की सराहना करता है और उनके ख़िलाफ़ चल रही बयानबाजि़यों की कठोर शब्दों में निंदा करता है।