नयी दिल्ली : 7 अगस्त 2025 : धारा 370 के ख़ात्मे की छठी सालगिरह पर, 5 अगस्त 2025 को जम्मू और कश्मीर प्रशासन के गृह विभाग ने—जो सीधे-सीधे केंद्र सरकार के नुमाइंदे, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के मातहत है—कश्मीर समस्या से संबंधित 25 महत्त्वपूर्ण किताबों को प्रतिबंधित कर एक बेहद चिंताजनक और निंदनीय संदेश दिया है। सरकार यह कहना चाहती है कि उसके द्वारा स्वीकृत आख्यान से मतभेद रखने वाले किसी भी लेखन-प्रकाशन को लोगों तक पहुंचने का, और लोगों को ऐसे किसी लेखन-प्रकाशन तक पहुंचने का अधिकार नहीं है। ए जी नूरानी, अनुराधा भसीन, अरुंधति रॉय, सुमंत्र बोस समेत अनेक देशी-विदेशी लेखकों की कश्मीर-समस्या से संबंधित ये पुस्तकें गहन शोध, विश्लेषण और फ़ील्ड-वर्क का नमूना मानी जाती हैं। गृह विभाग का आरोप है कि वे ‘अलगाववाद को बढ़ावा’ देती हैं, ‘भारतीय राज्य के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने’ का काम करती हैं, और ‘जम्मू और कश्मीर के बारे में झूठा आख्यान प्रचारित करती हैं, जो हिंसा और आतंकवाद में युवाओं की भागीदारी के पीछे एक अहम प्रेरक रहा है’। इसी आधार पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 98 के तहत उन्हें ‘ज़ब्तशुदा’ घोषित करने आदेश जारी हुआ है।
जम्मू और कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली का कोई संकेत मिलने के बजाय लगातार उसे कुचलने के उदाहरण सामने आ रहे हैं। यह सिलसिला बहुत सीमित दायरे में प्रसारित हो पाने वाली शोधपरक विश्लेषणात्मक पुस्तकों को प्रतिबंधित करने तक भी आ पहुंचा है।
जनवादी लेखक संघ इस प्रतिबंध की निंदा करता है और इसे अविलंब वापस लिये जाने की मांग करता है। हम लेखकों से भी अपील करते हैं कि विभिन्न मंचों पर इस फ़ैसले का विरोध करते हुए लोगों तक सच पहुंचाने का काम करें। किताबों को विचार-विमर्श और बहस का विषय होना चाहिए, ज़ब्ती का नहीं। साथ ही, अगर ‘भारतीय राज्य के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने’ के झूठे आरोप में आज किताबें प्रतिबंधित की जा रही हैं तो कल को लेखकों की गिरफ़्तारी भी हो सकती है। हमें इस रुझान का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए।