प्रिय साथी,
हमने सितम्बर महीने की पहली तारीख़ को 20 अन्य संगठनों के साथ मिलकर 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रो. कलबुर्गी की हत्या के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन का फैसला किया था. धीरे-धीरे इस अभियान में शामिल होनेवाले संगठनों की संख्या 35 हो गयी और कल 5 सितम्बर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बहुत अच्छा आयोजन हुआ. 400 से अधिक लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, शिक्षकों और विद्यार्थियों की भागीदारी रही. बिगुल, संगवारी, दिशा, जनम, के वाई एस, जनसंस्कृति(मलयालम भाषियों का समूह) आदि ने अपनी प्रस्तुतियां दीं; सुरेंदर सिंह नेगी ने सॉफ्ट पॉप पेश किया; पंकज श्रीवास्तव ने वीरेन डंगवाल की कविता का गायन किया; कुणाल ने मुक्तिबोध के ‘भूल-गलती’ का नाटकीय पाठ किया; सुभाष गाताडे, डी रघुनन्दन, जॉन दयाल, नंदिता नारायण, बालेन्दु स्वामी, साहिबा फारुक़ी, आनंद स्वरुप वर्मा, कविता कृष्णन, चेंग लेन तथा कई और वक्ताओं ने अपनी बात रखी. मदन कश्यप ने छोटा सा वक्तव्य देते हुए अपनी एक कविता का पाठ किया. कार्यक्रम की सदारत मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, अली जावेद और पंकज सिंह कर रहे थे. आख़िर में तीनों अध्यक्षों ने संक्षेप में अपनी बातें रखीं. पंकज सिंह ने लोगों के आग्रह पर अपनी कविता भी सुनाई.
जमावड़े में डी राजा भी थोड़े समय के लिए देखे गए. शुभा, विष्णु नागर, नीलाभ, संजीव, इब्बार रब्बी, मनमोहन, रेखा अवस्थी, संजय सहाय, सुरेश सलिल, बलवंत, आशुतोष कुमार, विभास वर्मा, विवेक मिश्र, बली सिंह, शम्भू यादव, उमाशंकर चौधरी, ज्योति चावला और इनके अलावा कई नए-पुराने लेखक शामिल थे. दिल्ली विश्वविद्यालय, जे एन यू और जामिया मिल्लिया के अनेक शिक्षक और कई नाट्य-गायन समूहों के कलाकार शुरू से अंत तक जमे रहे.
हमने आह्वान किया था कि प्रो. कलबुर्गी के हत्या के ख़िलाफ़, और इसके व्याज से विवेक तथा अभिव्यक्ति पर हो रहे हमलों के ख़िलाफ़ हमें हर जगह अन्य बिरादराना संगठनों के साथ मिलकर, संभव हो तो शिक्षक दिवस पर या फिर किसी और दिन, सांस्कृतिक प्रतिरोध कार्यक्रम करने चाहिए. जहां-जहां आयोजन हो गए हैं, या तय हो गए हैं, उनकी जानकारी हमें मिल चुकी है. जिन इकाइयों की ओर से अभी तक कोई पहल नहीं हो पायी है, उन्हें गंभीरता से इस दिशा में सोचना चाहिए. आप जितनी जल्द फैसला लेकर केंद्र को सूचित कर पायेंगे, उतना अच्छा. सूचना सिर्फ रिकॉर्ड के लिए अपेक्षित है