पाठ्यपुस्तकों में बदलाव पर

नयी दिल्ली : 16 जून 2024 : जनवादी लेखक संघ एनसीईआरटी की पाठपुस्तकों में किये गये ताज़ा बदलावों की निंदा करता है और पाठ्यपुस्तकों के विकृतिकरण के सिलसिले पर विराम लगाने तथा उनके मूल स्वरूप को दुबारा बहाल किये जाने की मांग करता है।

एनसीईआरटी ने पाठपुस्तकों में संशोधन के अपने हालिया चौथे चक्र में ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करने का बेहद आपत्तिजनक और निंदनीय क़दम उठाया है। इंडियन एक्स्प्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़, बारहवीं कक्षा की राजनीतिशास्त्र की पुस्तक में से बाबरी मस्जिद का नाम हटाकर उसे ‘तीन गुंबदों वाला ढांचा’ कहा गया है, साथ ही, कई अंशों की छंटनी करते हुए या उनका पुनर्लेखन करते हुए अयोध्या वाले हिस्से को चार पृष्ठ से घटाकर दो पृष्ठों में समेट दिया गया है। इससे जो बेहद अहम ब्योरे किताब से बाहर हो गये हैं, उनमें शामिल हैं: ‘गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक की भाजपा की रथ-यात्रा; कार-सेवकों की भूमिका; 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढहाये जाने के बाद हुई सांप्रदायिक हिंसा; भाजपा-शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन; और “अयोध्या के घटनाक्रम पर” भाजपा द्वारा “खेद” व्यक्त किया जाना।’

केंद्र सरकार द्वारा इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की ऐसी कोशिशें किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं। हम इसकी भर्त्सना करते हैं और ऐतिहासिक तथ्यों तथा भारतीय संविधान की मूल भावना की अवहेलना करने वाले बदलावों के वापस लिये जाने की मांग करते हैं।

मौजूदा एनडीए सरकार को सहारा देने वाली, धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की दावेदार टीडीपी और जदयू जैसी पार्टियों को भी सोचना चाहिए कि क्या वे पाठ्यपुस्तकों में किये जाने वाले ऐसे बदलावों से सहमत हैं? उन्हें इनकी अनदेखी करने के बजाय इन पर अपना पक्ष सामने रखना चाहिए।


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