विवान सुंदरम का निधन

 

नयी दिल्ली : 30 मार्च 2023 : हमारे समय के महत्वपूर्ण चित्रकार, कला-चिंतक विवान सुंदरम का दिनांक 29 मार्च 2023 को दिल्ली में निधन हो गया।

28 मई 1943 को शिमला में जन्मे विवान ने महाराजा सयाजी विश्वविद्यालय, बड़ौदा के ललित कला विभाग और लंदन के स्लेड कला संस्थान से कला-शिक्षा अर्जित की थी। अपने छात्र-जीवन से ही वामपंथी राजनीतिक विचारों के असर में आ चुके विवान सुंदरम ने आठवें दशक में भारत लौट आने के बाद ही चित्रकारों और छात्रों के समूहों के साथ प्रतिरोध की गतिविधियों में हिस्सेदारी शुरू कर दी थी । 

 उनके चित्र-विषयों में हमेशा उत्पीड़ित समाज के लोग और उनके जीवन-संघर्ष प्रमुख रहे।  1981 में गीता कपूर द्वारा क्यूरेट की गयी कला-प्रदर्शनी ‘प्लेस फ़ॉर पीपुल’ को भारतीय कला-परिदृश्य में महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसके बाद भारतीय चित्रकला में सामाजिक यथार्थ को विश्लेषित करने वाले मुहावरों का चलन और महत्व बढ़ा। विवान सुंदरम उसी चित्र-प्रदर्शनी से राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने लगे। 1990 के बाद के समय में समकालीन भारतीय चित्रकला को अंतरराष्ट्रीय कला आंदोलनों, विमर्शों, नयी तकनीकों और कला सामग्रियों से जोड़ने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। भारतीय कला-संसार में संस्थापन (इंस्टालेशन) कला और वीडियो-अंकन जैसे नये प्रयोगों का रास्ता उन्होंने ही निर्मित किया।

 अपने समय के मुद्दों और समस्याओं पर सदैव उनकी पैनी नज़र रही। अपनी कृतियों में इसीलिए उन्होंने हमेशा समसामयिक मसलों को चित्रित किया। पिछली सदी के अंत तक संश्लिष्ट होते गये सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ को चिह्नित करने और अपनी कृतियों में उसे चित्रित करने के लिए रंगों, रेखाओं के साथ ही शिल्पों, अन्य वस्तुओं, छायाचित्रों और वीडियो-अंकनों के समावेश के उनके कला-प्रयोगों ने बाद के वैचारिक चित्रकारों की पूरी पीढ़ी को प्रभावित और प्रोत्साहित किया। युद्ध, सांप्रदायिकता, व्यक्तिगत अतीत जैसे विषयों पर उनके कला-प्रयोग सराहे गये। ‘सहमत’ जैसे वैचारिक कला-संगठन के साथ वे शुरू से जुड़े हुए थे और बेहिचक उसकी गतिविधियों में हिस्सेदारी करते थे।उनकी प्रयोगधर्मी कलाकृतियां भारत सहित दुनिया की तमाम महत्वपूर्ण कला-प्रदर्शनियों, कला-दीर्घाओं और संग्रहालयों में शामिल की गयीं। उनकी लिखी पुस्तकों और संयोजित की गयी कला-प्रदर्शनियों का महत्व सदा बना रहेगा।

 ऐसे समय में जब जनता के लोकतांत्रिक हुक़ूक़ पर लगातार हमले हो रहे हैं, समाज को बांटने वाली ताक़तें मज़बूत होती जा रही हैं, यह एक दु:खद सचाई है कि सामान्यतः कलाकार सार्वजनिक तौर पर अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता प्रकट करने से हिचकिचाने लगे हैं। ऐसे में विवान सुंदरम जैसे वैचारिक मुखर और सक्रिय कलाकार का न रहना, भारत में जनवाद की पक्षधर कला-साहित्य की धारा के लिए एक बड़ा नुक़सान है।

 जनवादी लेखक संघ इस प्रखर, सचेत और सक्रिय चित्रकार के निधन पर शोक-संतप्त है। अलविदा, विवान सुंदरम! दुनिया को बेहतर बनाने के रचनात्मक संघर्षों में आप हमेशा याद किये जायेंगे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *