मुंबई जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष राधेश्याम उपाध्याय का दिनांक 21अक्टूबर को सुबह आठ बजे हृदयाघात के कारण निधन हो गया। वे लगभग 83 वर्ष के थे। उपाध्याय जी मुंबई व महाराष्ट्र जनवादी लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उपाध्याय जी स्वभाव से क्रिटिक थे। राहुल सांकृत्यायन की पुस्तक पढ़कर वे मार्क्सवाद की तरफ आकृष्ट हुए और धीरे-धीरे मार्क्सवादी विचार सरणि के अध्येता बने। उन्होंने मार्क्स, लेनिन,प्लाखानेव, माओ, आदि महान चिंतकों के साथ -साथ भारतीय वाम विचारकों की पुस्तकों का भी गहन अध्ययन किया था। वे भारतीय भौतिकवादी दर्शन के व्याख्याकार थे। साम्राज्यवाद व उपभोक्तावाद (बाजारवाद) पर उन्होंने महानगर में समय-समय पर लगभग पचास महत्त्वपूर्ण व्याख्यान दिये। इस विषय पर उन्होंने लगभग चालीस लेख लिखे हैं। इसके अलावा उन्होंने भारतीय दर्शन की भौतिकवादी परंपरा पर लगभग दो सौ पृष्ठों की अप्रकाशित सामग्री लिख रखी है। उन्होंने अपने लेखन व कर्म से ब्राह्मणवाद पर जमकर प्रहार किया। साहित्य से उनका जुड़ाव अध्यापन पेशे से जुड़े होने के कारण हुआ । राहुल सांकृत्यायन व रामविलास शर्मा उनके परम प्रिय लेखक थे। इन दोनों लेखकों को वे हिंदी साहित्य की ‘हेडलाइट’ कहा करते थे। प्रेमचंद, निराला, उग्र ,मुक्तिबोध तथा परसाई उनके प्रिय रचनाकार थे। इन सभी रचनाकारों पर उन्होंने कई आलोचनात्मक लेख भी लिखे हैं। उपाध्याय जी साहित्यिक गोष्ठियों के प्राण तत्व (जान) हुआ करते थे। उनमें आलोचनात्मक दृष्टि के साथ-साथ गहरा हास्य बोध भी था। वे अपनी चुटीली व ललित टिप्पणियों से ज़बरदस्त हास्य(ह्युमर )पैदा करते थे। राधेश्याम जी कुशल वक्ता के साथ -साथ मोटिवेटर भी थे। उन्होंने सैकड़ों व्यक्तियों को न केवल पढ़ने के लिए प्रेरित किया अपितु उन्हें लेखन से भी जोड़ा। वे एक कुशल संपादक भी थे। सेवानिवृत्त होने के बाद महानगर के एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक की संपादकीय टीम से जुड़े और लगभग एक दशक तक हिंदी पत्रकारिता की। उन्होंने उक्त अख़बार की न केवल भाषा सुधारी, अपितु कार्यरत साथी पत्रकारों के नज़रिए को भी बदला। कॉलेजों व विश्वविद्यालय के सेमिनारों में वे बडे सम्मान से बुलाये जाते थे। उन्हें महानगर का सर्वश्रेष्ठ अध्यापक होने का गौरव प्राप्त था। यह सम्मान छात्रों को कम, शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के महती कार्य के लिए दिया गया। यू.जी.सी. की पूर्व अध्यक्षा (चेयरपर्सन) डॉ. माधुरी बेन शाह व मुंबई के तत्कालीन मेयर मनमोहन सिंह बेदी के हाथों उन्हें श्रेष्ठ अध्यापक का सम्मान मिला था। वे हिंदी भाषा की जटिलता व विशिष्टता दोनों को बखूबी समझते और समझाते थे। पाणिनि व किशोरीदास वाजपेयी पर उनका असाधारण अधिकार था। उपाध्याय जी ने लोक व शास्त्र(क्लासिक)दोनों को साधा था। संभवतः इसीलिए उनका लेखन व भाषण कभी अप्रवाही व अप्रभावी नहीं रहा। उन्होंने सैकड़ों लोगों को धर्म से विमुख कर दर्शन से जोड़ा। कर्मकांडी को तार्किक बनाया और सामाजिक रूपांतरण की प्रक्रिया से जोडा़। वे सच्चे अर्थों में लोक शिक्षक थे। दुर्भाग्य से उनका विपुल लेखन अप्रकाशित ही रहा। प्रकाशन के लिए उन्होंने किसी से जोड़-तोड़ या सिफारिश नहीं की। जलेस के लिए वे समर्पित थे। महानगर की लंबी व थका देने वाली यात्रा के बाद भी उनके उत्साह व कार्य दायित्व में कभी कमी नहीं आयी। ऐसे समर्पित व विद्वान साथी का निधन हम सबके लिए दुख का सबब है। ऐसे कर्मठ साथी की स्मृतियों को प्रणाम।
प्रस्तुति : शैलेश सिंह, मुंबई जलेस ।