नयी दिल्ली : 25 अक्टूबर : ‘प्रलय की विभीषिका में / शीत झेलते / नौका पर परंपरागत / बीज को ढोते / मैं मनुस्मृति नहीं गढ़ सकता / मुझे उगाने होंगे / घने अंधेरे में / चेतना के अंकुर / नष्ट करने होंगे / विषाणु से सड़े-गले / रुढ़िग्रस्त बीज’ —सुनो कथावाचक
हिंदी कविता का यह चिंतनशील स्वर सदा के लिए मौन हो गया. 23 अक्टूबर को जमशेदपुर के कवि-विचारक श्री नन्द कुमार उन्मन नहीं रहे। वे जनवादी लेखक संघ की सिंहभूम ज़िला इकाई के अध्यक्ष भी थे। उनकी प्रकाशित कृतियों में ग़ज़ल-संकलन सफ़े उदास हैं और चार सर्गों में विभाजित लंबा काव्य-संवाद सुनो कथावाचक प्रमुख हैं. समीक्षात्मक निबंधों, एकांकियों और गीतों के कई संकलनों के साथ-साथ उनका एक महाकाव्य प्रमेय भी अप्रकाशित ही रहा।
श्री नन्द कुमार लंबे समय से जनवादी लेखक संघ के सक्रिय सदस्य थे। वे अविभाजित बिहार में जलेस की बिहार राज्य इकाई के संस्थापक सदस्यों में से थे। उनके दिशा-निर्देश में सिंहभूम ज़िला इकाई लगातार सक्रिय रही। अगस्त महीने में यह जानकारी मिली कि वे गले के कैंसर से पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती हुए। 23 अक्टूबर को मेहरबाई अस्पताल में उनका निधन हो गया.
साथी नन्द कुमार का जाना हिंदी दुनिया और जनवादी आंदोलन के लिए एक बड़ी क्षति है। हम उन्हें सादर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं.