अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सरकारी हमले

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सरकारी हमले के ख़िलाफ़

दलित लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, प्रतिरोध का सिनेमा, न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव और जनवादी लेखक संघ का संयुक्त बयान:

 नयी दिल्ली : 10 फ़रवरी : प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 09/02/2021 को स्वतंत्र मीडिया पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ के दफ़्तर पर तथा उसके स्वत्वाधिकारी, निदेशकों और संबद्ध पत्रकारों के घरों पर छापे डालना बेबाक़ पत्रकारिता का दमन करने की कोशिशों की सबसे ताज़ा कड़ी है। मोदी सरकार शुरुआत से ही सच का साथ देनेवाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को निशाने पर लेती आयी है। प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, पुलिस—इन सभी महकमों का इस्तेमाल निडर मीडिया को डराने-धमकाने और ग़लत मामलों में फंसाने में किया जाता रहा है। सीएए विरोधी आंदोलन और किसान आंदोलन के साथ इस तरह की दमनकारी हरकतों में और तेज़ी आयी है। ज़्यादा दिन नहीं हुए, अपनी आलोचनात्मक धार के लिए सुपरिचित छह पत्रकारों पर राष्ट्रद्रोह के आरोप के साथ एफ़आईआर दर्ज की गयी थी। सिंघू बॉर्डर से पत्रकारों की गिरफ़्तारियां भी हुईं। कश्मीर में पत्रकारों का उत्पीड़न लगातार जारी है और उत्तर प्रदेश में हाथरस मामले की रिपोर्टिंग करते पत्रकारों को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत गिरफ़्तार किये जाने की घटना भी अभी पुरानी नहीं पड़ी है।

‘न्यूज़क्लिक’ एक ऐसा मीडिया पोर्टल है जो इस सरकारी दहशत के माहौल में निर्भीकता से सच को लोगों तक पहुंचाता रहा है। सरकार की गोद में बैठकर लोकतंत्र की जड़ें खोदनेवाले मीडिया संस्थानों के मुक़ाबले ‘न्यूज़क्लिक’ मीडिया जगत के उस छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर भारतीय लोकतंत्र की उम्मीदें क़ायम हैं। उसके खिलाफ़ यह जांच सरकार द्वारा उत्पीड़न की जानी-पहचानी चाल के निर्लज्ज इस्तेमाल का नमूना है।

हम अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के इस्तेमाल की निंदा करते हैं और ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय को अपना काम ज़रूर करना चाहिए, पर जांच को उत्पीड़न का हथियार बनाना हर तरह से निंदनीय है।

जन संस्कृति मंच | दलित लेखक संघ | प्रगतिशील लेखक संघ | इप्टा | प्रतिरोध का सिनेमा | न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव

| जनवादी लेखक संघ


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