जलेस के 1982 के ‘घोषणापत्र’ में ‘हरिजन’ शब्द के प्रयोग पर विवाद
जनवादी लेखक संघ की वेबसाइट पर मौजूद उसके 1982 में पारित ‘घोषणापत्र’ में ‘हरिजन’ शब्द के प्रयोग को लेकर कुछ मित्रों ने विवाद खड़ा किया है। इस संबंध में हम बताना चाहते हैं कि उस समय के घोषणापत्र के कई बिंदुओं को आज के दौर में दुरुस्त न पाते हुए, उस घोषणापत्र को प्रतिस्थापित करने वाले एक नये दस्तावेज़ की दिशा में जलेस अपनी पहलक़दमी पहले ही कर चुका है और जनवरी 2018 में संपन्न हुए नौवें राष्ट्रीय सम्मलेन में नये घोषणापत्र का मसौदा जलेस की आम सभा के आगे पेश किया जा चुका है। जलेस की अपनी जनवादी कार्यप्रणाली के तहत इसे देशभर में इकाइयों के पास सुझावों के लिए भेजा जा चुका है। इसकी अंतिम स्वीकृति की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, इसीलिए इसे नये घोषणापत्र के रूप में अभी जारी नहीं किया गया है. लेकिन मसौदे के रूप में ही हम अब इसे सार्वजनिक कर रहे हैं, ताकि लोग यह देख सकें कि हमारे सोच की दिशा क्या है।
लेकिन साथ-साथ हम यह भी बताना चाहते हैं कि नये घोषणापत्र को अंतिम रूप से पारित और जारी किये जाने के बावजूद पिछला घोषणापत्र संदर्भ के लिए वेबसाइट पर पहले दस्तावेज़ के रूप में उपलब्ध रहेगा, क्योंकि उसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ करना इतिहास के साथ छेड़छाड़ है। अगर 1982 के अपने घोषणापत्र में जलेस ने ‘दलित’ की जगह ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल किया था, तो यह उस समय का एक तथ्य है ठीक उसी तरह जिस तरह अनेक लेखकों, कवियों, चिंतकों की रचनाओं और यहां तक कि सरकारी ग़ैरसरकारी अनेक दस्तावेज़ों में दर्ज है।
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