संजीव के उपन्‍यास फांस पर संगोष्ठी

‘किसान की आत्महत्या देश की आत्महत्या’ : संजीव

 

दिल्ली : 20 दिसम्बर : जनवादी लेखक संघ दिल्ली द्वारा दिनांक 19 दिसम्बर को संजीव के उपन्‍यास पर फांस पर एक विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया. गोष्ठी में उपन्‍यास की रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए संजीव ने कहा कि मंच पत्रिका के संपादन के दौरान किसानों की आत्महत्या की ख़बर पाकर मैं विचलित होता रहा. बाद में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्‍वविद्यालय, वर्धा में अतिथि लेखक के रूप में विदर्भ के 11 ज़िलों के किसानों की स्थिति को बहुत क़रीब से देखने , जानने और समझने का अवसर मिला जिससे मैं इतना विचलित हुआ कि मुझे लगा तीन लाख से अधिक किसानों की आत्महत्या से बड़ा मेरे लिए और कोई लेखकीय सरोकार नहीं हो सकता . उन्‍होंने कहा कि उपन्‍यास में लिखी सारी बातें सच है और उपन्‍यास ने लिखते के वक्त मुझे बहुत रुलाया है. उन्‍होंने कहा कि किसान की आत्महत्या देश की आत्महत्या है.

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए हिन्‍दी के प्रसिद्ध आलोचक व प्रोफेसर डॉ नित्यानंद तिवारी ने कहा ‘’ उपन्‍यास के बारे में दो बातें शुरू से उठाई जा सकती हैं पहली बात यह कि यह उपन्‍यास भारतीय समाज का रियल टेक्‍स्‍ट है और दूसरी कि यह उपन्‍यास इस टैक्‍स्‍ट को पारंपरिक परिप्रेक्ष्य में रख कर पढ़ने की मांग करता है . रियल टेक्‍स्‍ट की व्याख्या करते हुए उन्‍होंने कहा कि जब दुनिया महा मंदी से जूझ रही थी, तब भारतीय समाज संभल रहा था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान और किसानई है. किसान जीवन को इस आधार पर भारतीय समाज का रियल टेक्‍स्‍ट कहना उचित होगा. प्रेमचंद और रेणु ने यह रियल टेक्‍स्‍ट दिया था. किसान जीवन का उपन्‍यास के थीम बना कर दोनों की कला संरचनाएं उपनिवेश्‍वादी राष्ट्रवाद और स्थानीयता के बीच के अवकाशों से बनती है. संजीव के इस उपन्‍यास में नेशनल, लोकल और ग्‍लोबल के बीच केअवकाश से कहानी की आधार संरचना बनती है. इस तरह मैला आँचल की तरह ही इस उपन्‍यास को उदारीकरण के बाद का ट्रेंड सैट्टर उपन्‍यास कहा जा सकता है . उन्‍होंने आगे कहा कि यह उपन्‍यास जीवन और समाज में रूपांतरण की प्रक्रिया पर बल देता है जैसे पानी सामाजिक वस्तु से किस तरह बाजा़र की वस्तु बन गया . इसी तरह बहुत सी चीजों और सामाजिक तबक़ों का रूपांतरण हो रहा है .इस रूपांतरण के सूक्ष्म संकेतों से यह उपन्‍यास रचा गया .उपन्‍यास पर बोलते हुए कथाकार हरियश राय ने कहा कि किसानों की आत्महत्या की भयावह त्रासदी और अमानवीय समाज व्‍यवस्‍था के भीषण अपराध के प्रतिरोध के रूप में संजीव का यह उपन्‍यास लिखा है. प्रेमचंद और रेणु सामंती व्‍यवस्‍था ,जाति व्‍यवस्‍था में फंसे किसानों की मार्मिक कथा कहते हैं जबकि संजीव भूमंडलीकरण के आक्रामक दौर में कृषि की बदहाली और उस बदहाली के कारण किसानों की आत्महत्या की कथा कहते है . संगोष्ठी में कहानीकार टेकचंद ने विस्तार से उपन्‍यास के विभिन्न पक्षों पर गौर किया और कहा कि धर्मान्‍तरण भी आत्महत्या के निरस्‍कृति का एक रास्ता हो सकता है . कहानीकार विवेक मिश्र ने अपने आलेख के माध्यम से इस उपन्‍यास की व्यापक पड़ताल करने की कोशिश की. विचार विमर्श में हिस्सा लेते हुए प्रेमपाल शर्मा ने कहा कि पी साईंनाथ की किताब तीसरी फसल के बाद संजीव का यह पहला उपन्‍यास है जो किसानों की आत्महत्या पर केन्द्रित है .इस उपन्‍यास पर बोलते हुए जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि संजीव एक अंत्‍यंत परिश्रमी कथाकार हैं और यह परिश्रम उनके इस उपन्‍यास में दिखाई देता है.गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिन्‍दी की वरिष्ठ कथाकार मैत्रेयी पुष्‍पा ने कहा कि मैं इस उपन्‍यास को संजीव के माध्यम से जानती हूं .उन्होने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि आज ऐसा परिवेश बन गया है जिसके तहत किसान मजदूर बन गये है . गोष्ठी का संचालन जनवादी लेखक संघ दिल्ली के सचिव प्रेम तिवारी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन रहमान मुसव्विर ने किया. गोष्ठी में रेखा अवस्थी , चंचल चौहान , इब्‍बार रब्‍बी, जनवादी लेखक संघ के उपमहासचिव संजीवकुमार , विभास चंद वर्मा , बलवंत कौर बजरंग , बली सिंह , शंभु यादव व बड़ी संख्या में छात्र व युवा लेखक मौजूद थे : (प्रस्तुति : हरियश राय).


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