नयी दिल्ली : 6 नवंबर, 2022 : शीर्षस्थ साहित्यिक आलोचक और सिद्धांतकार प्रो. मैनेजर पांडेय का निधन हिंदी के साहित्यिक समाज की एक बड़ी क्षति है। 1941 में बिहार के गोपालगंज में जन्मे और 2006 में जनेवि के भारतीय भाषा विभाग से सेवानिवृत्त हुए प्रो. पांडेय 81 वर्ष की अवस्था में भी सजग-सक्रिय थे। इंतकाल से कुछ महीनों पहले तक साहित्य-समाज-राजनीति पर उनकी टिप्पणियों-प्रतिक्रियाओं में वही धार क़ायम थी जिसके लिए वे हमेशा से जाने जाते थे। पिछले कुछ समय से वे अस्वस्थ चल रहे थे और लगातार अस्पताल में भरती थे। तक़रीबन दो हफ़्ते पहले जब अस्पताल ने भी जवाब दे दिया, तबसे वे अपने आवास पर ही ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे थे। आज, 6 नवंबर 2022 को, सुबह 8 बजे उन्होंने अपने आवास पर ही अंतिम सांस ली।
हिंदी की प्रगतिशील-जनवादी आलोचना को समृद्ध करने में प्रो. मैनेजर पांडेय का योगदान असंदिग्ध है। पश्चिम की कई बहसों, सैद्धांतिक प्रस्थानों और भारतीय संदर्भ में उनकी उपयोगिता-अनुपयोगिता से उन्होंने हिंदी की दुनिया को परिचित कराया। साहित्य के समाजशास्त्रीय अध्ययन को एक गंभीर शाखा के रूप में स्थापित करने में उनकी अहम भूमिका थी। इनके अलावा भी, भक्ति-काव्य से लेकर लोकप्रिय/लुगदी साहित्य तक, उनकी आलोचना का दायरा अत्यंत विस्तृत था। ‘शब्द और कर्म’, ‘साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका’, ‘भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य’, ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि’, ‘अनभै सांचा’, ‘आलोचना की सामाजिकता’ उनकी कुछ चुनिंदा आलोचना-पुस्तकें हैं जो साहित्याध्ययन में लंबे समय तक प्रासंगिक बनी रहेंगी।
अध्ययन और अध्यापन की व्यस्तताओं के बीच प्रो. मैनेजर पांडेय ने लंबे समय तक ‘जन संस्कृति मंच’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी का भी निर्वाह किया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के लोकप्रिय अध्यापक रूप में भी वे हमेशा याद किये जायेंगे। उनसे दिशा-निर्देश पाने वाले विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या आज साहित्य की दुनिया में सक्रिय है।
प्रो. मैनेजर पांडेय के निधन से जनवादी लेखक संघ शोक-संतप्त है और उन्हें हृदय से आदरांजलि अर्पित करता है।