जयपुर में संपन्न हुआ जलेस का दसवां राष्ट्रीय सम्मेलन

जनवादी लेखक संघ का त्रिदिवसीय दसवां राष्ट्रीय सम्मेलन, जयपुर के इंदिरा गांधी पंचायती-राज भवन के सभागार में, दिनांक 23 से 25 दिसंबर के बीच संपन्न हुआ। सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से जनवादी लेखक संघ के लगभग 250 सदस्य एकत्र हुए थे। 23 मार्च को उद्घाटन सत्र और विचार सत्र का आयोजन किया गया था और ये दोनों सत्र खुले सत्र थे। इस दिन भारी संख्या में जयपुर के लेखक, कलाकार और बुद्धिजीवी भी सम्मेलन में सम्मिलित हुए।

सम्मेलन  उद्घाटन सत्र का आरंभ जयपुर के गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता श्री सवाई सिंह के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने बाहर से आये लेखक-अतिथियों का स्वागत किया और राजस्थान की महान संस्कृति से भी सबको परिचित कराया। सम्मेलन का उद्घाटन वक्तव्य प्रसिद्ध पत्रकार और कृषि संकट के गंभीर अध्येता, पी साईनाथ ने दिया। उन्होंने कहा कि मौजूदा निज़ाम किसान, मज़दूर और निम्नमध्य वर्ग का विरोधी है और उसकी सारी नीतियां, इज़ारेदार पूंजीपतियों और साम्राज्यवादी विदेशी निगमों को फ़ायदा पहुंचाने वाली हैं। अपनी जनविरोधी कारगुज़ारियों को छुपाने के लिए, यह मनुवादी-सांप्रदायिक विचारधारा का पोषण कर रही है। लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की जिस विचारधारा के लिए आज़ादी की लड़ाई के दौरान संघर्ष किया गया था और इन मूल्यों को हमारे संविधान का आधार बनाया गया था, मौजूदा निज़ाम इनका ख़ात्मा कर मनुवादी-सांप्रदायिक फ़ासीवाद की विचारधारा, ‘हिंदुत्व’ को थोपने की कोशिश कर रहा है। इसके विरुद्ध संघर्ष का काम केवल हिंदी से नहीं हो सकता, इसके लिए हमें उन बोलियों तक जाना होगा, जिन्हें हिंदी प्रदेशों की मेहनतकश जानती-समझती है।

पी साईनाथ ने यह सवाल भी उठाया कि लेखकों का हमारे समय के प्रवाहों से क्या और किस तरह का संबंध है। उन्होंने मौजूदा समय के संकटों में कृषि संकट, उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण, असमानता और पलायन आदि को गिनाते हुए, इस बात पर अफ़सोस जताया कि लेखकों और पत्रकारों के लेखन में इन विषयों को आमतौर पर नज़ऱअंदाज़ किया गया है। इनको जितना महत्व देना चाहिए, उतना महत्व नहीं दिया गया है। उन्हें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ। उन्होंने आंकड़े देकर देश की गंभीर स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने आज़ादी के ‘अमृत महोत्सव’ की चर्चा करते हुए कहा कि इस अभियान में आज़ादी के नायकों, मूल्यों और आदर्शों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। जिस संगठन का आज़ादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं था, उसी के कार्यकर्ता और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही, हर जगह हाइलाइट किया जा रहा है। ‘हर घर तिरंगा’ अभियान में भी राष्ट्रीय भावना और तिरंगे के पीछे छिपे दर्शन की भी, पूरी तरह से उपेक्षा की गयी है।

सम्मेलन के मुख्य अतिथि और प्रख्यात विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता, राम पुनियानी ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि चारों ओर दिखायी दे रहे मौजूदा संकट के लिए, वर्तमान राजनीति ज़िम्मेदार है। इस राजनीति का निर्धारक संघ परिवार है, जिसके इशारे पर पिछले तीस-चालीस सालों में धर्म के आवरण में राजनीति नंगा नाच कर रही है तथा विभिन्न समुदायों में नफ़ऱत और उन्माद पैदा करके धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करने का खेल, खेल रही है। लेकिन, इस राजनीति का धर्म के नैतिक मूल्यों से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे समय में जब जनता के बीच फूट डालने की कोशिश की जा रही है लेखकों को लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संविधान और आज़ादी की लड़ाई की विरासत को बचाने के काम को, अपने लेखन का आधार बनाना होगा।

उद्घाटन सत्र में ही सफ़ाई कर्मचारियों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक बैजवाड़ा विल्सन ने देश की मौजूदा स्थिति पर प्रकाश डालते हुए विशेष रूप से सफ़ाई कार्यों में लगे दलितों के जीवन की मुश्किलों का उल्लेख करते हुए लेखकों का आह्वान किया कि वे समाज के सबसे पददलित वर्ग के उत्पीडऩ को भी अपनी लेखन का हिस्सा बनायें और जनता को जागरूक करें।

उद्घाटन सत्र के बाद आयोजित विचार सत्र में नंदिता नारायण, आनंद कुमार, रतन लाल और चंचल चौहान ने अपने विचार व्यक्त किये। सहयोगी और बिरादाराना संगठनों में ‘जन-संस्कृति मंच’ की ओर से हिमांशु पांड्या, ‘दलित लेखक संघ’ की ओर से हीरालाल राजस्थानी और ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ की ओर से प्रेमचंद गांधी ने वक्तव्य दिये और इस बात को रेखांकित किया कि इस दौर में सभी लेखक संगठनों को मिल-जुलकर काम करने की ज़रूरत है। इस दोनों सत्रों की अध्यक्षता असग़ऱ वजाहत, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और जीवन सिंह के अध्यक्ष मंडल ने की।

उद्घाटन सत्र शुरू होने से पहले मौजूद लेखकों ने गांधी स्थल से सम्मेलन स्थल तक संविधान के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने के लिए मार्च किया, प्रिएंबल पढ़ा। जन नाट्य मंच, दिल्ली की ओर से ‘तथागत’ नाटक खेला गया और अंत में कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया, जिसका संचालन राघवेंद्र रावत ने किया।

सम्मेलन के संगठनात्मक सत्रों में महासचिव की ओर से केंद्र की विस्तृत रिपोर्ट संयुक्त महासचिव संजीव कुमार ने प्रस्तुत की और उस पर सभी राज्यों के प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे और साथ ही इन प्रतिनिधियों ने भी अपने-अपने राज्यों की पिछले सम्मेलन से इस सम्मेलन के बीच हुई गतिविधियों का संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। सम्मेलन ने केंद्र की रिपोर्ट को करतल ध्वनि के साथ पारित किया।

संगठन सत्र के दौरान ही ‘जयपुर घोषणा’ हिंदी में राजीव गुप्ता ने और उर्दू में ख़ालिद अशरफ़ ने पेश की जिसमें मौजूदा हालात की गंभीरता और लेखकों और कलाकारों के एकजुट होने की ज़रूरत को रेखांकित किया गया था। ‘जयपुर घोषणा’ पर कई सदस्यों ने अपने विचार प्रस्तुत किये और सुझाव भी दिये, जिन्हें शामिल करते हुए संचालन समिति द्वारा घोषणा को अंतिम रूप दिया जायेगा। प्रस्तावित संशोधनों के साथ ‘जयपुर घोषणा’ को भी सम्मेलन ने सर्वसम्मति से पारित किया।

संगठनात्मक सत्रों में ही इतिहास के सांप्रदायीकरण के ख़िलाफ़`, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के पक्ष में, शिक्षा के सांप्रदायीकरण और व्यावसायीकरण के ख़िलाफ़, निजीकरण के ख़िलाफ़, बुद्धजीवियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के पक्ष में, बुलडोजर नीति के ख़िलाफ़, महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़, जयपुर के उच्च न्यायालय परिसर में लगी मनु की मूर्ति हटाने के पक्ष में, समाज में बढ़ती हिंसा के ख़िलाफ़, उर्दू की हिफ़ाज़त और फ़रोग के पक्ष में और अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में, कुल ग्यारह प्रस्ताव पारित किये गये। पिछले सम्मेलन से इस सम्मेलन के दौरान जो लेखक, कलाकार और बुद्धिजीवी हमारे बीच नहीं रहे और जिनमें से कइयों का देहावसान कोरोना के कारण हुआ, उन्हें दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी।

अंतिम सांगठनिक सत्र में नयी केंद्रीय परिषद का चुनाव किया गया। केंद्रीय परिषद ने बाद में नयी कार्यकारिणी और पदाधिकारी मंडल का चुनाव किया। इससे पहले जलेस संविधान में दो संशोधन प्रस्तुत किये गये जिन्हें सर्वसम्मति से स्वीकृति प्रदान की गयी। असग़र वजाहत को अध्यक्ष तथा चंचल चौहान व राजेश जोशी को, कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। संजीव कुमार, महासचिव और बजरंग बिहारी तिवारी, नलिन रंजन सिंह और संदीप मील, संयुक्त महासचिव चुने गये। इब्बार रब्बी, रामप्रकाश त्रिपाठी, नमिता सिंह, विष्णु नागर, मृणाल, जीवन सिंह और प्रहलादचंद्र दास, उपाध्यक्ष चुने गये और रेखा अवस्थी, शुभा, मनमोहन, अली इमाम ख़ान, नीरज सिंह, मनोज कुलकर्णी, बलीसिंह, सुधीर सिंह, विनीताभ, हरियश राय, राजीव गुप्ता, ख़ालिद अशरफ़, सचिव तथा जवरीमल्ल पारख, कोषाध्यक्ष चुने गये। रमेश कुंतल मेघ, शेखर जोशी, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, कांतिमोहन, वक़ार सिद्दीक़ी और आलोक धन्वा को, संरक्षक मंडल में ससम्मान शामिल किया गया है।

प्रस्तुति :  राजीव गुप्ता/ संदीप मील 


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