नयी दिल्ली : 15 नवंबर 2021 : ‘आपका बंटी’, ‘महाभोज’, ‘यही सच है’, ‘त्रिशंकु’ जैसी कालजयी रचनाओं की प्रणेता, हिंदी की अप्रतिम कथाकार मन्नू भंडारी नहीं रहीं। 90 वर्षीय मन्नू जी का साहित्यिक समारोहों में आना-जाना काफ़ी समय से बंद था और पिछले कुछ दिनों से वे गंभीर रूप से बीमार चल रही थीं।
मन्नू भंडारी नयी कहानी आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से थीं। स्त्री-पुरुष-संबंध, नये परिवार और पीढ़ियों के रिश्ते, नये दौर की शिक्षित और अधिकार-सजग स्त्री के संघर्ष इत्यादि उनके कथा-साहित्य में जितनी बारीक़ी से दर्ज हुए हैं, उतनी ही गहराई के साथ उनके उपन्यास महाभोज में हमारे समय की राजनीति और नौकरशाही में पिसते आम आदमी का संघर्ष भी चित्रित हुआ है। उन्होंने जिस भी विषय को चुना, अपनी गहरी संवेदनशीलता, तीखे प्रेक्षण और सधे हुए कथा-कौशल की छाप छोड़ी। लगभग तीस वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हिंदी प्राध्यापक के रूप में सेवाएं देनेवाली मन्नू जी देश-विदेश की अनेक भाषाओं में अनूदित और समादृत हुईं । देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों के हिंदी पाठ्यक्रम में उनकी रचनाएं पढ़ायी जाती हैं। उन्हें प्राप्त होने वाले पुरस्कारों और सम्मानों की संख्या दशाधिक है।
मन्नू भंडारी के न रहने से देश का एक बड़ा लेखक-पाठक-समाज शोक-संतप्त है। जनवादी लेखक संघ उन्हें हृदय से श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है और उनके परिजनों तथा प्रशंसकों के प्रति अपनी शोक-संवेदना व्यक्त करता है।