नयी दिल्ली : 31 अगस्त : इस कठिन समय में साथी अली जावेद का जाना तरक़्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक के लिए एक सदमा है। वे अभी सत्तर के भी नहीं हुए थे। 13 अगस्त को उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ। तत्काल वे एक निजी अस्पताल में भरती कराये गये जहां उनका ऑपेरेशन हुआ। उसके बाद से वे लगातार गहन चिकित्सा कक्ष में रहे। हालत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के पंत अस्पताल में भरती कराया गया, पर स्थिति में कोई सुधार न हुआ और कल रात उन्होंने आख़िरी सांसें लीं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग से सेवानिवृत्त प्रो. अली जावेद ने जनेवि से एमए और पीएचडी की उपाधि ली थी। उनकी किताबों में ‘बरतानवी मुस्तश्रिक़ीन और तारीख़-ए अदब-ए उर्दू’, ‘क्लासिकीयत और रूमानवीयत’, ‘जाफ़र जटल्ली की एहतेजाजी शाइरी’ इत्यादि प्रसिद्ध हैं। इन दिनों वे प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष थे और इससे पहले उसके महासचिव रहे। 2012 से 2016 तक वे अफ्रीकन एंड एशियन राइटर्स यूनियन के भी अध्यक्ष रहे।
यह सांप्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ संघर्ष में उनकी अथक सक्रियता का दौर था जिसके बीच में ही वे हमें छोड़ गये। जनवादी लेखक संघ भारी मन से उन्हें खिराजे-अक़ीदत पेश करता है। हम इस कठिन घड़ी में उनकी जीवन-साथी परवीन और उनके बच्चों के दुख में शामिल हैं।