असगर वजाहत की डायरी ‘पाकिस्तान का मतलब क्‍या….’ पर आलेख – हरियश राय

अगसर वजाहत को पढ़ना अपने आप में एक सुखद अनुभव का एहसास कराता है. उनके लेखन मुस्लिम समाज के अंतर्विरोधों को पर्त दर पर्त समझने एक नई आधारभूमि देता है . मुस्लिम समाज में आए अंतर्विरोधों को वे भारतीय सामंती … Continue reading

दिवंगत जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के बांदा स्थित घर

यह बहुत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिवंगत जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के बांदा स्थित घर को व्यावसायिक प्रयोजनों से ज़मींदोज़ करने की तैयारियां चल रही हैं. केदार बाबू ने जिस घर में जीवन के 70 साल गुज़ारे, जहां हिंदी के … Continue reading

सांप्रदायिक फ़ासीवाद का उभार और लेखकीय प्रतिरोध का समय – चंचल चौहान

सांप्रदायिक फ़ासीवाद का उभार और लेखकीय प्रतिरोध का समय – चंचल चौहान निराला की एक कविता है : ‘राजे ने अपनी रखवाली की।‘ यह साफ़तौर पर वर्ग-विभाजित समाज में शोषकवर्ग के वर्चस्व से जुड़ी असलियत खोलती है। वाचक ने इस कविता … Continue reading

इंडिया’ज़ डॉटर

ब्रिटिश फ़िल्मकार लेस्ली उडविन के वृत्तचित्र ‘इंडिया’ज डॉटर’ पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया जाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा आघात है। जनवादी लेखक संघ इसकी कड़े शब्दों में निंदा करता है और मांग करता है कि इस फ़िल्म पर से … Continue reading

कामरेड जीतेन्द्र रघुवंशी का आकस्मिक निधन

भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) के महासचिव कामरेड जीतेन्द्र रघुवंशी का आकस्मिक निधन प्रगतिशील-जनवादी लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के लिए एक स्तब्धकारी सूचना है. आगरा-निवासी रघुवंशी जी को स्वाइन फ्लू की शिकायत पर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था, जहां 48 … Continue reading

रायपुर साहित्य-महोत्सव पर जलेस का बयान

12-14 दिसंबर 2014 को मुख्यमंत्री रमण सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने जिस साहित्य-महोत्सव का आयोजन किया, उसे जनवादी लेखक संघ असहमति का सम्मान करने के स्वांग और एक राजनीतिक छलावे के रूप में देखता है. जिस … Continue reading

सिविल सेवाओं के इम्तहान; हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं

सिविल सेवाओं के इम्तहान में मानविकी के विषयों हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा के खिलाफ पिछले एक साल से चल रहा आंदोलन इस महीने एक नए जुझारू दौर में पहुँच गया है।  आन्दोलनरत विद्यार्थियों के अनुसार, २०११ में … Continue reading