अगसर वजाहत को पढ़ना अपने आप में एक सुखद अनुभव का एहसास कराता है. उनके लेखन मुस्लिम समाज के अंतर्विरोधों को पर्त दर पर्त समझने एक नई आधारभूमि देता है . मुस्लिम समाज में आए अंतर्विरोधों को वे भारतीय सामंती … Continue reading
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यह बहुत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिवंगत जनकवि केदारनाथ अग्रवाल के बांदा स्थित घर को व्यावसायिक प्रयोजनों से ज़मींदोज़ करने की तैयारियां चल रही हैं. केदार बाबू ने जिस घर में जीवन के 70 साल गुज़ारे, जहां हिंदी के … Continue reading
सांप्रदायिक फ़ासीवाद का उभार और लेखकीय प्रतिरोध का समय – चंचल चौहान निराला की एक कविता है : ‘राजे ने अपनी रखवाली की।‘ यह साफ़तौर पर वर्ग-विभाजित समाज में शोषकवर्ग के वर्चस्व से जुड़ी असलियत खोलती है। वाचक ने इस कविता … Continue reading
ब्रिटिश फ़िल्मकार लेस्ली उडविन के वृत्तचित्र ‘इंडिया’ज डॉटर’ पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया जाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा आघात है। जनवादी लेखक संघ इसकी कड़े शब्दों में निंदा करता है और मांग करता है कि इस फ़िल्म पर से … Continue reading
भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) के महासचिव कामरेड जीतेन्द्र रघुवंशी का आकस्मिक निधन प्रगतिशील-जनवादी लेखकों-संस्कृतिकर्मियों के लिए एक स्तब्धकारी सूचना है. आगरा-निवासी रघुवंशी जी को स्वाइन फ्लू की शिकायत पर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भरती कराया गया था, जहां 48 … Continue reading
12-14 दिसंबर 2014 को मुख्यमंत्री रमण सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने जिस साहित्य-महोत्सव का आयोजन किया, उसे जनवादी लेखक संघ असहमति का सम्मान करने के स्वांग और एक राजनीतिक छलावे के रूप में देखता है. जिस … Continue reading
सिविल सेवाओं के इम्तहान में मानविकी के विषयों हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की उपेक्षा के खिलाफ पिछले एक साल से चल रहा आंदोलन इस महीने एक नए जुझारू दौर में पहुँच गया है। आन्दोलनरत विद्यार्थियों के अनुसार, २०११ में … Continue reading