कवि विष्णु चंद्र शर्मा नहीं रहे। कोविड-19 से संक्रमित होकर आज, तारीख 2/11/2020 को उनका इंतकाल हो गया। यह हिंदी की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है।
विष्णु चंद्र शर्मा का जन्म 1933 में हुआ था। उनके पिता कृष्ण चंद्र शर्मा कांग्रेस के बड़े नेता और समाज-सुधारक थे। संपूर्णानंद के साथ वे राजनीति में सक्रिय थे, साथ ही ‘जातपांततोड़क’ नाम की पत्रिका भी निकालते थे।
विष्णु जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1957 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए किया था। उसी वर्ष उन्होंने ‘कवि’ पत्रिका निकालनी शुरू की जो एक उम्दा साहित्यिक लघु पत्रिका थी। उसमें नामवर सिंह, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन, जगत शंखधर जैसे लेखक योगदान करते थे। बाद में उन्होंने ‘सर्वनाम’ पत्रिका भी निकाली जिसे बिल्कुल प्रतिकूल परिस्थितियों में लंबे समय तक निकालते रहे। हिंदी की साहित्यिक दुनिया में इन दोनों पत्रिकाओं का गहरा प्रभाव रहा। कुछ समय के लिए उन्होंने सीपीआई के दैनिक ‘जनयुग’ में भी काम किया। लेखन में वे कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, जीवनी और आलोचना जैसी विधाओं में सक्रिय रहे। उनकी लिखी कबीर, मुक्तिबोध, नजरुल इस्लाम और राहुल सांकृत्यायन की जीवनियां बहुचर्चित रहीं। पहला कविता संग्रह ‘मौन सैंदूर शांत जल का’ 1957 में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद से नौ और कविता-संग्रह प्रकाश में आये।
वामपंथी रुझान के विष्णुचंद्र जी पांडेय बेचन शर्मा उग्र के शिष्य थे और तुनकमिज़ाजी में उन्हीं की परंपरा के थे। कभी समझौता न करना और नापसंद आने वाली बात के लिए सीधे उलझ पड़ना उनका स्वभाव था, लेकिन झगड़ों को वे कभी दिल में नहीं रखते थे। स्वभाव बिल्कुल पारदर्शी था। वे ज़बरदस्त घुमक्कड़ भी थे। देश-विदेश की यात्राएं करना उनका शगल था। हिंदी में वे अपने यात्रा-संस्मरणों के लिए भी याद रखे जायेंगे।
उम्र के कारण पिछले कई सालों से उनकी शारीरिक सक्रियता में कमी आयी थी। दिल्ली के सादतपुर में हिंदी के महत्त्वपूर्ण कहानीकार महेश दर्पण समर्पित भाव से उनकी लगातार देख-रेख करते रहे थे। कोरोना ने ऐसा विलक्षण लेखक हमसे छीन लिया।
जनवादी लेखक संघ विष्णुचंद्र शर्मा जी की स्मृति को सादर नमन करता है।