रविवार, तारीख़ 17/02/2019 को विदुषी और रचनाकार अर्चना वर्मा के अप्रत्याशित निधन से हम सभी स्तब्ध हैं. वे कुछ वर्ष पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से सेवानिवृत्त हुई थीं. उनकी पहचान एक समर्थ रचनाकार, आलोचक और सम्पादक के रूप में थी. लम्बे अरसे तक ‘हंस’ और फिर ‘कथादेश’ जैसे प्रतिष्ठित मासिक पत्रों के सम्पादन से वे जुड़ी रहीं. हिन्दी के स्त्रीवादी चिंतन को समृद्ध करने में उनके योगदान का महत्व असंदिग्ध है.
अर्चना वर्मा साहित्यिक गतिविधियों में निरंतर सक्रिय और नवोन्मेषी बनी हुई थीं. पिछले कुछ वर्षों के उनके राजनीतिक रुझान से प्रगतिशील-जनवादी संस्कृतिकर्मियों को थोड़ी निराशा हुई थी, पर इसमें किसी को संदेह नहीं था कि अर्चना जी के हालिया विचार किसी लाभ-लोभ से प्रेरित न थे. वे जो सोचती थीं, उसे ईमानदारी से व्यक्त करती थीं.
ऐसी अर्चना जी के निधन से जनवादी लेखक संघ शोक-संतप्त है. हम उन्हें हृदय से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.