राष्ट्रीय सम्मलेन

28.07.2017 को जलेस के केन्द्रीय कार्यालय में हुई कार्यकारी मंडल की बैठक में सभी साथी इस बात से सहमत हुए कि राष्ट्रीय सम्मलेन के लिए तय तारीखों को बदलना अपरिहार्य कारणों से आवश्यक है. बदलाव के लिए हमने झारखंड के साथियों से सुझाव मांगा था. उन्होंने अनेक पहलुओं पर विचार करते हुए जो सुझाव भेजा, उसे कार्यकारी मंडल के साथियों ने अपनी स्वीकृति दी. तदनुसार अब राष्ट्रीय सम्मलेन 27-28 जनवरी 2018 को धनबाद में होगा.

यह देखते हुए कि अब सम्मलेन से पहले हमारे पास तक़रीबन छह महीने का समय है, उसकी तैयारी के सम्बन्ध में हम कुछ बातें बिन्दुवार तरीक़े से कहना चाहते हैं:

  1. कार्यकारी मंडल के कई साथियों ने इस बात को बलपूर्वक कहा कि सम्मलेन की तिथियां कार्यकारिणी और कार्यपरिषद की संयुक्त बैठक (30.04.2017) में तय हो जाने के बावजूद संगठन की इकाइयों उसे लेकर ढीलापन दिख रहा था. हम फ़िलहाल उसके कारणों में नहीं जाना चाहते. वह सचमुच एक गहन चर्चा का विषय है और उसे किसी इकहरे रूप में देखने से ग़लतफ़हमी फैलने की आशंका ज़्यादा है. ज़रूरी बात यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर हम जिस तरह के हालात से रू-ब-रू हैं, उसमें हमारी सक्रियता किसी भी और समय के मुक़ाबले ज़्यादा ज़रूरी है. हिंदुत्व और नव-उदारवाद का गठजोड़ हर मोर्चे पर बेहद आक्रामक है. इस आक्रामकता के सामने हमारा प्रतिरोध — ज़ाहिर है, एक संगठन के तौर पर — जिस स्तर का होना चाहिए, वह कहीं दिख नहीं रहा. ऐसी इम्तहान की घड़ियों में ही हमें अपनी तैयारी की असलियत का पता चलता है और अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि हम, औरों की बात तो छोड़िये, खुद अपनी निगाह में दयनीय रूप से अनुत्तीर्ण सिद्ध हो रहे हैं. इस सूरते-हाल में हमें राष्ट्रीय सम्मलेन की तैयारी को अपने सांगठनिक पुनरुज्जीवन, और इस तरह साम्प्रदायिक फ़ासीवाद की चुनौतियों के रू-ब-रू अपनी प्रतिरोधक क्षमता के सुदृढ़ीकरण, का साधन बनाने की ज़रूरत है. यह तैयारी इस बात को सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रस्थान-बिंदु का काम कर सकती है कि हमारी इकाइयां आज की चुनौतियों को महसूस करें और जहां-जहां आपसी संवाद स्थगित हो, वहां उसे क़ायम करते हुए चुनौतियों से लड़ने के तौर-तरीक़े सोचें-सुझाएं. खुद हमारे बीच पर्याप्त संवाद हो, तभी तो हम समान सरोकार वाले अन्य संगठनों/व्यक्तियों के साथ मिलकर विभिन्न स्तरों पर पहल करने के बारे में सोच भी सकते हैं.
  2. इस बात को महसूस करने की ज़रूरत है कि सम्मलेन कोई औपचारिकता नहीं है / नहीं होनी चाहिए. अगर हमारा रवैया उसे औपचारिकता भर बना देता है तो वह हमारे श्रम और संसाधनों की बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं. इसलिए हमारी हरचंद कोशिश होनी चाहिए कि यह जुटान हमारी ऊर्जाओं को नए सिरे से नियोजित करने का उपक्रम बने. सम्मलेन की कामयाबी तभी है जब हम अपनी आगे की कार्य-योजना के बारे में एक अधिक स्पष्ट समझ के साथ अपने प्रान्तों में लौटें, अपनी ज़िम्मेदारियों की क़ायदे से निशानदेही कर पायें और उनके बंटवारे का सुचिंतित ख़ाका हमारे पास हो. कहने की ज़रूरत नहीं कि इसे संभव करना हमारे प्रयासों पर ही निर्भर है.
  3. हमारे सम्मलेन की थीम है, ‘संस्कृति का रणक्षेत्र : चुनौतियां और संघर्ष’. बेहतर हो कि इस विषय पर हमारी इकाइयां अगले तीन-चार महीनों में अपनी-अपनी जगहों पर संगोष्ठियां आयोजित करें और उनमें अधिक-से-अधिक भागीदारी सुनिश्चित करें. भागीदारी सिर्फ उपस्थिति के अर्थ में नहीं, बल्कि विचार-विमर्श के स्तर पर भी. इससे सम्मलेन की केन्द्रीय चिंता के पक्ष में, अगर बहुत व्यापक स्तर पर नहीं भी तो कम-से-कम अपने साथियों के बीच, एक माहौल बनाने में मदद मिलेगी. साथ ही, वैचारिक रूप से खुद को तैयार करने के नतीजे के तौर पर, राष्ट्रीय सम्मलेन की चर्चाओं में हमारी भागीदारी अधिक फलदायी भी हो पायेगी.
  4. हमारे दीर्घावधि कार्यक्रम का एक मसौदा इस बीच सभी इकाइयों को भेजा जाएगा. हम चाहेंगे कि उस पर गहन चर्चा से निकले हुए सुझाव (वे इकाइयों के भी हो सकते हैं और व्यक्तियों के भी) हमें भेजे जायें. यह अभ्यास न सिर्फ अपने लक्ष्यों के निर्धारण की दृष्टि से उपयोगी होगा बल्कि इस आत्म-पहचान के लिए भी ज़रूरी है कि हम एक संगठन में क्यों हैं और सांगठनिक स्तर पर अपने कार्यभार को किस तरह परिभाषित करते हैं / करना चाहते हैं.
  5. जिन राज्यों में राज्य-सम्मलेन होना बाक़ी है, वहां बीच की इस अवधि में, सांस्कृतिक क्षेत्र की चुनौतियों और संघर्षों को ही थीम बनाकर, सम्मलेन आयोजित किये जा सकते हैं. जहां सम्मलेन न हों, वहां राज्य कार्यकारिणी की बैठक रखी जानी चाहिए और उसमें केंद्र से एक प्रतिनिधि को आमंत्रित कर राष्ट्रीय सम्मलेन की तैयारियों पर चर्चा की जानी चाहिए.
  6. इस बीच सदस्यता नवीनीकरण और नए सदस्य बनाने का काम पूरी तरह लगकर करने की ज़रूरत है. हम अपने आस-पास नियमित लिखनेवालों और लिखने के इच्छुक लोगों को चिन्हित कर उनके सामने सदस्यता का प्रस्ताव रख सकते हैं. जहां-जहां नवीनीकरण का काम अरसे से नहीं हुआ है, वहां यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सम्मलेन से पहले यह काम पूरा हो जाए.
  7. केन्द्रीय कार्यकारिणी और परिषद् की संयुक्त बैठक से पहले हमने सभी राज्यों से यह आग्रह किया था कि अधिकतम सदस्यों के नाम, पते और मेल आईडी केंद्र को मुहैया कराएं. इसी प्रक्रिया में स्वयं राज्यों के अपने रिकार्ड्स भी दुरुस्त हो जाते. लेकिन वह न के बराबर हो पाया है. हमने एक पर्फौर्मा भी इस मक़सद से भेजा था. वह शायद कार्यकारिणी सदस्यों और राज्य सचिवों के कागज़ात में कहीं बहुत नीचे अपनी मुकम्मल सादगी के साथ मौजूद होगा. अधिकतम मेल आईडी मुहैया कराने के लिए हम पहले भी एकाधिक बार राज्यों से आग्रह कर चुके हैं और कभी भी इस आग्रह को गंभीरता से नहीं लिया गया. यह समझने की ज़रूरत है कि अगर हम एक संगठित शक्ति के रूप में आगे के कामों को अंजाम देना चाहते हैं, या और कुछ नहीं तो एक संगठन के रूप में अपना न्यूनतम अर्थ भी अर्जित करना चाहते हैं, तो नाम-पते-फोननंबर-मेलआईडी का रिकॉर्ड तो हमें दुरुस्त करना ही चाहिए. प्रयास हो कि नवीनीकरण और सदस्यता अभियान के साथ इन सूचनाओं का दस्तावेज़ीकरण कर लिया जाए और केंद्र को समय रहते ये सूचनाएं उपलब्ध करा दी जायें.
  8. सम्मलेन में आने के लिए अपने प्रदेश के सदस्यों को प्रेरित करें. यह भी सुनिश्चित करें कि आपके प्रदेश से आनेवालों की अंतिम सूची में महिलाओं और युवाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो.
  9. धनबाद जिस रेलवे मार्ग पर है, वह ख़ासा व्यस्त मार्ग है. आजकल चार महीने पहले रेलवे आरक्षण शुरू हो जाता है. इसलिए 25-26 जनवरी को ध्यान में रखकर ऐन 25-26 सितम्बर को अपना आरक्षण करा लेने में ही बुद्धिमानी है. उसके दो-एक दिन के भीतर बर्थों की क्या उपलब्धता रह जायेगी, कहना मुश्किल है. (अक्टूबर वाली तिथियों को बदलने का एक बड़ा कारण यही रहा है, यह ध्यान में रखें!)
  10. दिसम्बर के पहले हफ़्ते तक हर राज्य अपने यहां से धनबाद जानेवाले सदस्यों की जानकारी हमें ईमेल या चिट्ठी से भेज दें, ताकि झारखंड की स्वागत समिति को तदनुसार ठहरने का इंतज़ाम करने में सहूलियत हो. 15 दिसम्बर के बाद मिलने वाली आगमन-सूचनाओं के लिए व्यवस्था कर पाने का आश्वासन देना स्वागत समिति के लिए संभव न होगा.

इन बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए, आइये, हम राष्ट्रीय सम्मलेन की तैयारी में जुटें. यह बेहद संगठित और संगठन-कुशल साम्प्रदायिक फ़ासीवादी शक्तियों का मुक़ाबला करने के लिए खुद को तैयार करने की दिशा में एक ज़रूरी अभ्यास है.


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