एनडीटीवी पर एक दिन के प्रतिबन्ध का तानाशाही फ़ैसला वापस लो!
नयी दिल्ली : 4 नवंबर : सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अंतर-मंत्रालयी कमेटी द्वारा एनडीटीवी को एक दिन (9 नवम्बर) के लिए प्रतिबंधित करने का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. एनडीटीवी पर आरोप है कि उसने पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले की रिपोर्टिंग के दौरान ‘रणनीतिक रूप से संवेदनशील ब्योरे’ प्रसारित किये थे. गौरतलब है कि लगभग सभी टेलिविज़न चैनलों ने मिलती-जुलती रिपोर्टिंग की थी. मोदी सरकार द्वारा एनडीटीवी को ख़ास तौर से चुना जाना उसकी मंशाओं को स्पष्ट कर देता है. यह सरकार की सबसे मूलगामी आलोचना करनेवाले चैनल को किसी बहाने से धमकाने और चुप करा देने की कोशिश है. सीधे-सीधे मीडिया की आज़ादी के उसूल का यह उल्लंघन आपातकाल की याद दिलाता है. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिबन्ध जिस दिन लगाया गया, उससे ठीक एक दिन पहले ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के पुरस्कार वितरण समारोह में प्रधानमंत्री ने मीडिया की आज़ादी पर अंकुश लगाए जाने के सन्दर्भ यह कहा था कि “आज निष्पक्ष भाव से आपातकाल की मीमांसा हर पीढी में होती रहनी चाहिए, ताकि इस देश में ऐसा कोई राजपुरुष पैदा न हो जिसको इस तरह के पाप करने की इच्छा तक पैदा हो.” यह इच्छा मोदी सरकार के भीतर गहरे तक धंसी हुई है, यह बात उसके अब तक के कारनामों से वैसे भी ज़ाहिर थी, प्रतिबन्ध के इस फैसले से तो ऐसा ‘पाप करने की इस इच्छा’ को लेकर कोई संदेह नहीं रह गया है.
जनवादी लेखक संघ इस फैसले की कठोर शब्दों में निंदा करता है और इसे अविलम्ब वापस लेने की मांग करता है.