ज़ुबैर रज़वी नहीं रहे

zubzir razviनयी दिल्ली : 21 फरवरी : जनवादी लेखक संघ परिवार अपने कार्यकारी अध्यक्ष और उर्दू के बड़े अदीब श्री ज़ुबैर रज़वी की आकस्मिक मौत की ख़बर से स्तब्ध और शोक-संतप्त है. ज़ुबैर साहब कल दिनांक 20-02-2016 को दिल्ली की उर्दू अकादमी के एक कार्यक्रम में सदारत कर रहे थे. मंच पर ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा. उन्हें तत्काल पन्त अस्पताल ले जाया गया जहां थोड़ी देर बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

ज़ुबैर साहब का जन्म 1936 में अमरोहा में हुआ था. उनकी आरंभिक शिक्षा अमरोहा और हैदराबाद में हुई और दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. किया. भारत सरकार की एक सीनियर फेलोशिप के अंतर्गत उन्होंने ‘उर्दू का हिन्दुस्तानी लोककला के साथ सम्बन्ध’ विषय पर काम किया. लम्बे समय तक वे आकाशवाणी के उर्दू प्रोग्राम से जुड़े रहे. एक कार्यक्रम निर्माता और प्रसारक के रूप में उन्हें खूब लोकप्रियता मिली.

1960 के बाद के उर्दू शायरों में ज़ुबैर साहब का महत्वपूर्ण स्थान है. ‘लहर लहर नदिया गहरी’, ‘ख़िश्त दीवार’, ‘दामन’, ‘मुसाफ़ते शब’, ‘पुरानी बात है’, ‘धूप का सायबान’, ‘उंगलियाँ फ़िगार अपनी’ आदि उनके कविता-संग्रह हैं. उनकी नज़्मों का कुल्लियात ‘पूरे क़द का आईना’ नाम से प्रकाशित है. कविता-शृंखला ‘पुरानी बात है’ और लम्बी नज़्म ‘सादिक़ा’ ने उनके कवि-व्यक्तित्व को नयी ऊंचाइयां दीं.

ज़ुबैर साहब की अदबी शख्सियत के और भी कई पहलू हैं. 1991 से वे त्रैमासिक उर्दू पत्रिका ‘ज़हने जदीद’ का प्रकाशन और संपादन करते रहे. इस पत्रिका को उर्दू का साहित्यिक समाज और प्रबुद्ध पाठक वर्ग एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप मानता है. उन्होंने आज़ादी के बाद मंचित होनेवाले उर्दू नाटकों के चार संकलन संपादित किये. दंगों से सम्बंधित कहानियों का संकलन ‘काली रात’ भी उन्होंने संपादित किया. 1960 के बाद की उर्दू कविता पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘नयी नज़्म: तजज़िया और इंतख़ाब’ में 1960 से 80 तक की महत्वपूर्ण कविताओं का संचयन है जिसे लोग सही अर्थों में प्रतिनिधि मानते हैं. बहुत अलग-अलग तरह की विधाओं में वे दख़ल रखते थे. उन्होंने ‘सिनेमा के सौ साल’ और दुनिया के प्रसिद्ध चित्रकारों पर ‘आलमे पेंटर्स’ जैसी किताबें हमें दीं.

आज जब उन लोगों के हाथों देशभक्त और देशद्रोही होने के सर्टिफ़िकेट बांटे जा रहे हैं जिन्होंने ऐसा करने की कोई पात्रता अर्जित नहीं की, कोई 50 साल पहले ‘यह मेरा हिन्दुस्तान’ जैसे लोकप्रिय गीत लिखने वाला शायर हमारे बीच से चुपके से चला गया. उनकी लिखी ये पंक्तियाँ हमारे कानों में हमेशा गूंजती रहेंगी: ‘ये है मेरा हिन्दुस्तान / मेरे सपनों का जहान / इससे प्यार है मुझको’.

जनवादी लेखक संघ ज़ुबैर साहब को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है.


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *