साहित्य अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक (दिनांक 23.10.2015) के मौक़े पर रवीन्द्र भवन के द्वार पर आये हम लेखक, पाठक और संस्कृतिकर्मी देश में लगातार बढ़ती हुई उस हिंसक असहिष्णुता और फ़ासीवादी प्रवृति के प्रति अपनी चिंता और विरोध व्यक्त करते हैं जिसके कारण अभिव्यक्ति से लेकर हर तरह की व्यक्तिगत और सामाजिक आज़ादियाँ और उनसे जुड़े संवैधानिक मूल्य गहरे संकट में हैं. जिन लेखकों-संस्कृतिकर्मियों ने अकादमी का पुरस्कार वापस कर, अकादमी की सदस्यता से इस्तीफ़ा देकर, अकादमी के अध्यक्ष को पत्र लिख कर या सामान्य रूप से बयान जारी कर इस माहौल के ख़िलाफ़ अपना विरोध ज़ाहिर किया है — और हत्या और घृणा की राजनीति के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की अभूतपूर्व पैमाने पर एक ऐतिहासिक पहल की है — उनके साथ हम अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं. हम अकादमी के कार्यकारी मंडल से यह मांग करते हैं कि
- वह असहिष्णुता के इस वातावरण की — जिसमें तमाम और आज़ादियों के साथ-साथ लेखकों के लिखने और बोलने की आज़ादी पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं और हत्याएं तक हो रही हैं — स्पष्ट शब्दों में निंदा करे. याद दिलाने की ज़रूरत नहीं कि देश के प्रथम नागरिक, भारत के राष्ट्रपति महोदय ने भी इस वातावरण को लेकर हाल ही में दो बार सार्वजनिक रूप से और विस्तारपूर्वक अपनी चिंता व्यक्त की है.
- कार्यकारी मंडल अकादमी की स्वायत्तता को सुरक्षित रखने का संकल्प व्यक्त करे और एक प्रस्ताव पारित कर लेखकों को इस बात के लिए आश्वस्त करे कि अकादमी इस संकट के माहौल में अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति के अधिकार की रक्षा के लिए पहल लेने के अपने दायित्व से पीछे नहीं हटेगी.
- कार्यकारी मंडल अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के उस रवैये की स्पष्ट शब्दों में निंदा करे जो उनके साक्षात्कारों और बयानों में सामने आया है. श्री तिवारी पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों के इस कार्य को ‘अतार्किक’ बताते हैं और यह तर्क देते हैं कि अगर सरकार से कोई समस्या है तो लेखक अकादमी को क्यों निशाने पर ले रहे हैं, जबकि उन्हें याद दिलाने की ज़रुरत नहीं कि प्रो. एम. एम. कलबुर्गी की हत्या होने पर अकादमी ने कोई शोक-सन्देश भी जारी नहीं किया, हिंदी-उर्दू के 12 लेखकों के प्रतिनिधि-मंडल ने 16 सितम्बर को जब अध्यक्ष से मिल कर दिल्ली के रवीन्द्र भवन में शोक-सभा रखने का लिखित आग्रह किया तो उन्होंने इनकार कर दिया, और इस तरह अकादमी ने एक ऐतिहासिक अवसर पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्ष में खड़े होने के अपने गुरुतर दायित्व से किनारा कर लिया. लेखकों के आक्रोश के इस कारण की वे अनदेखी कैसे कर सकते हैं? और-तो-और, श्री तिवारी ने पुरस्कृत लेखकों के प्रति यह अपमानजनक बयान भी दिया है कि अकादमी द्वारा विभिन्न भाषाओं में छापी गयी उनकी किताबों से उन्हें रॉयल्टी और नाम मिला है, जबकि लेखक की प्रतिष्ठा अकादमी पुरस्कार मिलने का आधार है, न कि उसका परिणाम. स्पष्टतः श्री तिवारी ने लेखकों का भरोसा खो दिया है. अगर श्री तिवारी लेखकों के प्रति अपने शर्मनाक रवैये और अपमानजनक बयानों के लिए स्पष्ट शब्दों में क्षमायाचना न करें, तो उनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित कर उनसे इस्तीफ़े की माँग की जाए.
- कार्यकारी मंडल दिल्ली में अकादमी की ओर से प्रो. कलबुर्गी की हत्या पर शोक-सभा रखने का फ़ैसला ले और इस रूप में हिंसक असहिष्णुता के ख़िलाफ़ तथा अभिव्यक्ति की आज़ादी की हिफ़ाज़त के पक्ष में अपना दृढ़ मत व्यक्त करे.