उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘तितुमीर’ की प्रस्तुति

नयी दिल्ली : 20 जनवरी 023 : इस वर्ष 14 से 26 फ़रवरी तक चलने वाले 23वें ‘भारत रंग महोत्सव’ में उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘तितुमीर’ की प्रस्तुति के आमंत्रण को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा जिस तरह अचानक वापस लिया गया, वह इस महोत्सव की साल-दर-साल घटती जा रही प्रतिष्ठा पर एक और धब्बा है।

उत्पल दत्त का यह नाटक औपनिवेशिक बंगाल में हुए एक किसान विद्रोह की कहानी कहता है जिसका नायक तितुमीर नामक एक मुसलमान किसान था। औपनिवेशिक सरकार के ख़िलाफ़ बग़ावत की कहानी कहते हुए यह नाटक तितुमीर जैसे एक अचर्चित स्वाधीनता सेनानी को तो सामने लाता ही है, उस सांप्रदायिक सद्भाव और एका को भी रेखांकित करता है जो आज़ादी के लिए लड़ी गयी छोटी-बड़ी लड़ाइयों की सबसे बड़ी ताक़त थी।ग़ौरतलब है कि इस 23वें ‘भारत रंग महोत्सव’ की थीम है, स्वाधीनता संग्राम के गुमनाम नायक। इसी थीम को देखते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने हावड़ा की नाट्य संस्था ‘परिबर्तक’ को इस नाटक के मंचन के लिए आमंत्रित किया होगा, लेकिन शायद समय रहते उन्हें यह बता दिया गया कि औपनिवेशिक सरकार के विरोध में मौजूदा सरकार के विरोध की ध्वनि सुनी जा सकती है, साथ ही गुमनाम नायक का मुसलमान होना और नाटक में सांप्रदायिक एका का संदेश मुखर होना भी आज के हुक्मरान को नागवार गुज़रेगा। नाटक के निर्देशक जयराज भट्टाचार्जी ने एक बयान में यह बताया भी है कि पश्चिम बंगाल में इस नाटक के मंचन के कई मौक़ों पर आरएसएस-भाजपा ने विरोध-प्रदर्शन किये हैं। इन सबको देखते हुए समझा जा सकता है कि रा.ना.वि. ने एक व्यर्थ-से तकनीकी कारण की ओट लेकर इस प्रस्तुति के आमंत्रण को क्यों ख़ारिज किया।

नाटक जैसी प्रतिरोध की विधा को व्यवस्था और सरकार के लिए नखदंतहीन, अहानिकर और पालतू बनाने का रवैया हर दृष्टि से निंदा के लायक़ है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि रा.ना.वि. इस रवैये की एक-के-बाद-एक मिसालें पेश कर रहा है। उक्त मंचन का रोका जाना कोई अपवाद नहीं है। जनवादी लेखक संघ ‘तितुमीर’ के मंचन का आमंत्रण वापस लिये जाने के इस क़दम की निंदा करता है और आमंत्रण को बहाल रखे जाने की मांग करता है।


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