वीरेन डंगवाल नहीं रहे

जनवादी लेखक संघ हिंदी के प्रतिष्ठित कवि श्री वीरेन डंगवाल की मृत्यु पर गहरा शोक प्रकट करता है. वे लम्बे समय से कैंसर से पीड़ित थे. स्वास्थ्य संबंधी बाधाओं के बावजूद जनपक्षधर संस्कृति-कर्म के साथ उनका जुड़ाव लगातार बना हुआ था. दिल्ली शहर में, जहां इलाज के लिए उन्होंने जीवन के आख़िरी साल गुज़ारे, उनके कितने ही चाहनेवालों ने उन्हें उस हाल में भी सभाओं-संगोष्ठियों-विरोध प्रदर्शनों में देखा और सुना. बीमारी उनकी प्रतिबद्ध सक्रियता को पराजित नहीं कर पायी… लेकिन मृत्यु पर किसका वश है!

युवा साहित्यकारों के बीच वीरेन ‘दा के नाम से लोकप्रिय श्री वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947 को हुआ था. बरेली कॉलेज में अध्यापन करते हुए जीवन का ज़्यादा बड़ा हिस्सा उन्होंने बरेली में ही गुज़ारा. उनके चार कविता-संग्रह प्रकाशित हैं: ‘इसी दुनिया में’, ‘दुष्चक्र में सृष्टा’, ‘स्याही ताल’ और ‘कवि ने कहा’. 2004 में मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा उन्हें रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और  शमशेर सम्मान भी प्राप्त हुआ. उनकी कविता सघन सामाजिक सरोकारों और प्रतिबद्ध दृष्टि से उपजी रचनाशीलता का उत्कृष्ट उदाहरण है.

वीरेन डंगवाल की मृत्यु हिंदी समाज और हिंदी की वाम-जनवादी साहित्यिक धारा की एक बड़ी क्षति है. जनवादी लेखक संघ दिवंगत कवि को श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है.


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